
“गुटखा”
-बात कड़वी पर गुणकारी:-
क्लिनिक से घर आते समय मेरी गाड़ी के आगे रोड पर एक “सज्जन” अपनी बाइक से चल रहे थे।देहयष्टि और परिधान से सुसंस्कृत लगने वाले उन महानुभाव के कानों में आधुनिक झुमका(मोबाइल का इयरपीस)दमक रहा था।तभी अचानक उनका सिर बाजू में मुड़ा और पिच्च करती हुई गुटखे की पिचकारी मार्ग के डिवाइडर पर उड़ाकर,अपनी सभ्यता का वास्तविक परिचय देते हुए वे तेजी से निकल लिए।अवाक सा होकर मैंने ध्यान से देखा।इस कलाकार ने स्वच्छ भारत अभियान के चित्र में उकेरे गए गांधीजी के चश्मे को 2 बराबर भागों में सटीक विभक्त कर दिया था।निशाना अचूक था।मैंने सोचा कि ऐसे निशानची को ओलंपिक में भारत का प्रतिनिधित्व करने क्यों न भेजा जाये?हमारे आस-पास ऐसे असंख्य जुगालीधारी जीव बड़ी मात्रा में बिन होली के रंगकारी और बिन दीवाली के रंगोली बनाते रहते हैं।इनमें से कई इस समय इसी पोस्ट को पढ़ते हुए मुस्कुराते हुए अपनी इस वीरोचित आदत से मजबूर होकर वाशरूम के बेसिन को या आंगन में तुलसी के गमले को बचाते हुए दीवार को लाल करके आए हैं।धिक्कार है ऐसे मन के हारे हुए निखट्टूओं को।आदतें अच्छी या बुरी हो सकती हैं किन्तु अपनी आदतों के कारण आसपास या अन्य लोगों परेशानी हो यह कतई सहन नही होना चाहिए।इस बीमारी के उपचार के रूप में लोग तम्बाकू,पाउच या सुपारी के सेवन को सरकार द्वारा पूर्णतया प्रतिबंधित करने की बात करते हैं पर मैं एक बात बड़ी बेबाकी से कहूंगा कि केवल 5 वर्ष की बहुमत वाली कोई भी सरकार वास्तव में पंचवर्षीय योजना जैसी ही आती जाती रहेंगी।अत्यंत कठोर निर्णय और उनका त्वरित क्रियान्वयन लंबे समय तक किया जाए तभी परिणाम सकारात्मक आएंगे।एक पूरी पीढ़ी का समय लगेगा देश की ऐसी गुटखाखाऊ जनता को सुधारने के लिए।इस प्रजाति में नेता,पुलिस,अफसर,कर्मचारी,डॉक् टर, शिक्षक,वकील यहाँ तक कि विद्यार्थी भी आते हैं।यदि ऐसा कठोर क्रियान्वयन नही हो सकता तो मेरा एक तुच्छ सुझाव-अच्छा हो कि यदि ऐसे लोग नित्य दिन में 10 बार गुटखा खाने के स्थान पर एक ही बार विष गटक लें।
बात कड़वी पर गुणकारी
-मूल लेखक
डॉ.सुमित दिंडोरकर
B.H.M.S.,M.D.(Mumbai)
होम्योपैथ व काउंसिलर
मॉडर्न होम्यो क्लिनिक
(Estd.–1982)