“संघर्ष”
दोस्तों,अभाव और संघर्ष हमारे जीवन के ऐसे अभिन्न आयाम है जो हमें निखारते तो हैं पर इनसे जुड़ी यादें हमारे मानस-पटल पर किसी खंजर से गोदी गई इबारत की तरह हमेशा के लिए अंकित हो जाती हैं।आज मैं आपको मेरे क्लीनिक में लोगों से की गई बातचीत के अनुभव का सार बताऊंगा।होम्योपैथी में विस्तृत केस-हिस्ट्री पूछी जाती है अर्थात मरीज अथवा व्यक्ति की मानसिक स्थिति,अब तक का जीवन और उससे जुड़े अनुभव व यादें तथा मनुष्य के मनोविज्ञान को गहराई से आंकने के लिए उससे संबंधित प्रश्न पूछे जाते हैं।इसी दौरान जब मैं किसी मरीज(यहाँ व्यक्ति कहना उपयुक्त रहेगा)के अतीत के अभावों को टटोलने का प्रयास करता हूँ तब वह अक्सर भावुक हो उठता है।यह हममें से कई लोगों के साथ होता है या कहें लगभग सभी के साथ।हर व्यक्ति के अभावों का मापदंड अलग-अलग हो सकता है। उदाहरणार्थ-कोई व्यक्ति बचपन में की गई बाल मजदूरी को याद करके रोता है तो कोई व्यक्ति अपनी मां द्वारा घर-घर जाकर जूठे बर्तन धोने की याद में।कोई पापी पेट में सुलग रही भूख को पेट मे ही दफन कर काटी गई रातों को याद करके अश्रु बहाता है तो कोई रिश्तेदारों द्वारा सताए गए अपने माता-पिता की लाचार आंखों को याद करके अपने गालों पर आंसू लुढ़काता है।कोई व्यक्ति बचपन में चार आने की गोली तक ना मिलने के अभाव को याद करता है तो कोई त्योहारों में उतरन के कपड़े मिलने के अभाव को स्मरण करके टसुएँ बहाता है।यह अश्रु वास्तव में यशोदा मां की मथानी में मथे गए माखन की तरह अथवा बरसों सीप में पड़े रेतकण से बने मोती की तरह होते हैं।एकदम निर्मल और स्वच्छ।बच्चा कितना ही छोटा क्यों ना हो अभाव हर बच्चे को हो सकता है किंतु भावनात्मक अभाव सर्वाधिक चोट पहुंचाने वाला और लंबे समय तक हरा रहने वाला घाव देता है जो बीच बीच में पककर रिसने लगता है।किसी प्रियजन के साथ का अभाव,भावनात्मक हानि का सबसे बड़ा उदाहरण है।भारत मे जिस तरह कई मुद्दों को “आस्था” से जोड़ा जाता है उसी भाँति यह मामला “भावना” के महीन तारों का तानाबाना है।हर व्यक्ति के लिए अलग और निजी।देश,काल और वातावरण से परे।यह मेरा सौभाग्य है कि मानवीय संवेदना के इस भावनात्मक कोने को छू सकने का स्वर्णिम विश्वास अर्जित कर पा रहा हूँ और बड़े ही धैर्य और शांति से इन यादों को सुनकर लोगों के दुःख को हल्का कर पा रहा हूँ।यह हम सब का मानवीय अधिकार भी है और कर्तव्य भी।
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धैर्य लगाकर सुनते जाएं
दुःख की ज्वाला कम हो जाये ।
-मूल लेखक
डॉ.सुमित दिंडोरकर
B.H.M.S.,M.D.(Mumbai)
होम्योपैथ व काउंसिलर
मॉडर्न होम्यो क्लिनिक
(Estd.–1982)