“ISO सर्टिफिकेट”
कल मुझे किसी इंटरनेशनल कंपनी के भोपाल ऑफिस से फोन आया।उस भले आदमी ने मेरे “विस्मृत” अर्थात भूले-बिसरे हुए,परित्यक्त,बेचारे क्लीनिक को ISO 9001;ISO-2015 अर्थात इंटरनेशनल स्टैंडर्ड्स(अंतर्राष्ट्रीय मानकों) के अनुसार रजिस्टर करवाने का प्रस्ताव रखा।3 वर्ष का शुल्क 7000 बताया गया और 3 वर्ष बाद नवीनीकरण शुल्क 1200 रुपया बताया गया।चूंकि मैं जानता था कि यह रजिस्ट्रेशन अनिवार्य नहीं है फिर भी मैंने जानकारी के लिए उससे कई प्रश्न किए।मैंने सीधे उससे पूछा-
“इंटरनेशनल स्टैंडर्ड के हिसाब से किसी होम्योपैथिक डॉक्टर का क्लीनिक कैसा रहना चाहिए?कृपा करके मुझे बताइये ताकि मैं उन मानकों के स्तर तक पहुंच सकूँ”(मैंने अपनी दीनता का चारा कांटे में लगाया)
वह बोला-“वो तो हमारा आदमी आएगा और क्लिनिक देखेगा।”
मैं चकित था।स्वाभाविक सी बात है कि किसी डॉक्टर की वैध डिग्री और पंजीयन पहला मानक होना चाहिए।वह व्यक्ति कदाचित अपनी चतुराई पर प्रसन्न हो रहा था किंतु मैं जानता था कि वह चक्रव्यूह में फँस चुका है।मैंने अगली गूगली दागी-
“अगर किसी कारणवश मेरे क्लीनिक के स्टैंडर्ड मैच नहीं हुए तो क्या मुझे ISO रजिस्ट्रेशन नहीं मिलेगा?”
उसने तपाक से उत्तर दिया-
“नहीं,नहीं रजिस्ट्रेशन तो आपको मिल ही जाएगा।आप केवल अभी हाँ बोलें।”
उसकी अधीरता और कीमती ग्राहक खो देने की कल्पना से बदला हुआ सुर सुनकर मैं समझ गया कि यहां बात केवल पैसों की है और वह भी समझ गया कि मैं उसकी मंशा भांप चुका हूं।उसके बाद पूछे गए मेरे प्रश्नों का उस पर ठीक उसी तरह कोई असर नहीं हो रहा था जैसे कि शीतनिद्रा में सोए किसी भालू पर चाकू चलाने का कोई प्रभाव नहीं होता(यकीन मानिए मेरे प्रश्न भी जुदाई पिक्चर के परेश रावल की तरह उबाऊ कतई नहीं थे)।
अस्तु,स्पष्ट है कि ISO 9000 या अन्य मानकों का उद्देश्य केवल एक प्रमाणपत्र या तमगा देने तक ही सीमित रह गया है।उसने यह बात स्वीकार की कि यदि आप राष्ट्रीय या अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर आपके क्लिनिक का प्रचार करेंगे तो यह ISO का ठप्पा देखकर “बुद्धिजीवी” पहले आपके क्लिनिक पर ही इलाज करवाना पसंद करेंगे।मुझे यह नहीं पता कि सरकार का इस बारे में कितना हस्तक्षेप है किन्तु मुझे तीव्रता से यह हुआ कि इस घटना को सांझा किया जाना चाहिये इसलिए किया।
-मूल लेखक
डॉ.सुमित दिंडोरकर
B.H.M.S.,M.D.(Mumbai)
होम्योपैथ व काउंसिलर
मॉडर्न होम्यो क्लिनिक
(Estd.–1982)