अभिवादन मित्रों।
आज का हमारा विषय है-स्वास्थ्य(Health)।
वैसे तो शब्दकोश में स्वास्थ्य की अलग अलग परिभाषाएं दी गई हैं किंतु मेरी प्रिय परिभाषा यह है-
The harmonious co-ordination between mind & body.अर्थात मन और शरीर का सौहार्दपूर्ण सामंजस्य।
पर वास्तविक स्वास्थ्य क्या है?
हम किन लोगों को स्वस्थ कहेंगे? क्या हम स्वयं पूर्णतः स्वस्थ हैं?
केवल “बीमार नही पड़ने” का अर्थ पूर्ण स्वास्थ्य नही होता है।फिर वास्तविक स्वास्थ्य अर्थात क्या?
प्राचीन ग्रंथों और आधुनिक मनोविज्ञान के सूक्ष्म अध्ययन से मैंने यह पाया है कि सम्पूर्ण स्वास्थ्य 5 प्रकार का होता है-
1-शारीरिक स्वास्थ्य(Physical Health)
2-मानसिक स्वास्थ्य(Mental Health)
3-आर्थिक स्वास्थ्य(Financial Health)
4-सामाजिक स्वास्थ्य(Social Health)
5-आध्यात्मिक स्वास्थ्य(Spiritual Health)
प्रथम शारीरिक स्वास्थ्य अर्थात व्यायाम,योगासन,प्राणायाम, दौड़भाग वाले खेल(उदाहरण के लिए कब्बड्डी, खो-खो जैसे सभी भारतीय खेल,फुटबॉल,बास्केटबॉल, वॉलीबाल,तैरना,दौड़ना व तेज़ चलना आदि)से मजबूत बनाया हुआ हमारा शरीर।एक स्वस्थ शरीर में ही स्वस्थ मन का निवास होता है अतः सबसे पहले शरीर का स्वस्थ रहना नितांत आवश्यक है।
दूसरा है मानसिक स्वास्थ्य अर्थात सकारात्मक दृष्टिकोण के साथ जीवन का आनंद लेते हुए रचनात्मक कार्य करना जैसे पुस्तकें,उपन्यास आदि साहित्य और नित्य समाचार पत्र पढ़ना।इसके अतिरिक्त ललित कलाएं सीखना जैसे कि चित्रकारी, बागवानी,पाककला,शास्त्रीय या अन्य संगीत को सुनना और सीखना अथवा किसी वाद्ययंत्र को सीखना,शतरंज और सुदोकू जैसे खेल खेलना, अच्छी सी हल्की फुल्की फ़िल्म या विनोदी धारावाहिक देखना आदि कई मार्ग हैं।बच्चों के साथ मस्ती करना,मित्रों या अपने प्रियजनों के साथ गप्पे लड़ाना और बाज़ार जाकर शॉपिंग करना भी मानसिक स्वास्थ्य के लिए कुछ प्रिय विकल्प हैं।
तृतीय है आर्थिक स्वास्थ्य।ऐसी कहावत है कि पैसे का काम पैसा ही करेगा।वहाँ अन्य विकल्प मदद नही कर सकते।अधिकतर घरों में तनाव का मुख्य कारण है पैसे की कमी।मूलतः अमीर व्यक्ति भी पैसे की कमी की बात करेगा पर यहाँ मुद्दा यह कि कितना पैसा कमाया जाए ताकि हम स्वस्थ रहें।इस मामले में सबके अपने-अपने विचार हो सकते हैं।पर मेरा ऐसा मानना है कि व्यक्ति को इतना तो कमाना चाहिए कि नित्य फल और सब्जियाँ पूरे परिवार के लिए,बच्चों की शिक्षा और हमारे निजी शौक,आपातकाल में दवाइयाँ अथवा अस्पताल का खर्चा और वर्ष में एक बार किसी रमणीय स्थान पर परिवार सहित घूमकर आया जा सके और इतना करने के बाद भी वर्ष के अंत में कुछ पैसा बच जाना चाहिए।उक्त खर्चा करने पर माथे पर बहुत ज़्यादा बल नही आने चाहिए तभी आप आर्थिक रूप से स्वस्थ हैं ऐसा कहा जा सकता है।निःसंदेह इन सब के लिए योजना की आवश्यकता पड़ेगी।योजनाओं व पुरुषार्थ से दुनिया में सब संभव है। आर्थिक स्वास्थ्य अपने आप में एक अलग और विचारणीय चर्चा का विषय है अतः हम अगले स्वास्थ्य की ओर बढ़ते हैं।
अगला है सामाजिक स्वास्थ्य।सोशल मीडिया को कई लोग सामाजिक होना मान लेते है किंतु यह पूर्णतः सत्य नही हैं।सामाजिक स्वास्थ्य के लिए आपको सशरीर लोगों के बीच विचरण करना पड़ेगा।लोगों से मिलना-जुलना,सामाजिक संगठनों से जुड़कर उनमें सक्रिय रहना,लोगों की निःस्वार्थ सेवा करना,मोहल्ले में छोटा मोटा धार्मिक अथवा सामाजिक आयोजन करवाना,गणेशोत्सव जैसे सामाजिक त्योहारों पर मोहल्ले में सक्रिय रहना आदि कई उपाय हैं जिनसे हमारा सामाजिक स्वास्थ्य बलशाली होता है।
और अंतिम बिंदु है आध्यात्मिक स्वास्थ्य।आध्यात्मिकता कोई धर्मान्धता या मतान्धता नही है।वरन यह सकारात्मकता और मानवीयता का चर्मोत्कर्ष है।एक ऐसी जीवन शैली को जीना जिसमें आपके दैनिक जीवन के सभी कर्म ईश्वर या कहे उच्च सत्ता को समर्पित होते हों।आध्यात्मिकता यह सिखाती है कि मानव स्वयं को और स्वयं की क्षमताओं को जाने और ताकि प्रकृति और स्वयं का भेद मिट सके।आध्यात्मिक स्वास्थ्य पाने के लिए हमें किसी ऐसे आध्यात्मिक मार्ग से जुड़ना होगा जो ध्यान ,चिंतन मनन,सुपात्र व्यक्ति को दान जैसे सद्गुणों और भारतीय दर्शनशास्त्र पर गहरी पकड़ रखता हो।यह भी एक विस्तृत अध्ययन का विषय है और धार्मिक आडंबरों से एकदम अलग है।
अस्तु।
तो अब आप जान गए होंगे कि स्वास्थ्य के अलग अलग पहलू हमारे लिए कितने आवश्यक हैं।इस पोस्ट को शेयर करें ताकि यह अनमोल जानकारी कई लोगों तक पहुँचे।ऐसी ही रोचक जानकारियों के लिए मेरे पेज को लाइक और फॉलो करें।
-मूल लेखक
डॉ.सुमित दिंडोरकर
B.H.M.S.,M.D.(Mumbai)
होम्योपैथ व काउंसिलर
मॉडर्न होम्यो क्लिनिक
(Estd.–1982)