“हिंदी”
हिंदी दिवस की औपचारिक शुभकामनाएँ।मैं इसे औपचारिक ही कहूँगा क्योंकि एक हिंदी समर्थक और हिंदी प्रेमी होने के नाते आसपास घटित होने वाले हिंदी भाषा के नारकीय क्षरण को अनुभव करना ऐसा है मानो अम्ल के पीपे में उँगलियाँ डालने पर उन्हें धीरे-धीरे गलते हुए देखना और असह्य पीड़ा सहना।मध्यप्रदेश हिंदी भाषी राज्य होने के बाद भी यहाँ के लोगों के मन में हिंदी को लेकर कोई गर्व नही दिखता।’अंग्रेज़ी नहीं आती’ केवल इसीलिए हिंदी को घसीटते रहने की अनिवार्य बाध्यता के कारण ही हिंदी थोड़ी बहुत जीवंत है।मेरे कुछ मित्र जो कि हिंदी माध्यम शालाओं में पढ़ें हैं कहते हैं कि मेरे मुखपुस्तक लेख(फेसबुक पोस्ट) में उन्हें जो शुद्ध हिंदी पढ़ने को मिलती है उससे उनकी साहित्यिक क्षुधा क्षणिक रूप से शमित होती रहती है।मुझे स्मरण है कि हमारे हिंदी के आचार्यों ने बड़ी लगन और सूक्ष्मता से हमें यह भाषा,इसका व्याकरण और साहित्यिक पक्ष सिखाया है।रस,छंद,अलंकार,शब्द-शक्ति,लो कोक्तियाँ और मुहावरे,संदर्भ,प्रसंग और व्याख्या जैसे कई सुनहरी स्मृतियां हमारे स्मृतिपटल पर अजरामर हैं।भारतेंदु बाबु हरिश्चन्द्र,रामधारी सिंह दिनकर,सूर्यकांत त्रिपाठी निराला,मैथिलीशरण गुप्त,जयशंकर प्रसाद,मुंशी प्रेमचंद,महादेवी वर्मा आदि अनेक नींव के पत्थरों ने अपना सर्वस्व हिंदी भाषा के लिए उर्वर भूमि बनाने हेतु दान कर दिया।परंतु आज की नई पीढ़ी के हिंदी ज्ञान को देखकर बरबस ही हँसी छूट जाती है।उदाहरण के लिए-
“जब और तब”; इस क्रिया-विशेषण का सही उपयोग नही करने की बौनी समझ।एक वाक्य का उदाहरण देखें।
“सुबह जब होती है जब सूरज उगता है”
तुझे-मुझे के स्थान पर तेको-मेको और हिंदी लेखन में मात्राओं और व्याकरण की असंख्य त्रुटियां इस बात की परिचायक है कि लोगों का हिंदी शब्दकोश कितना दरिद्र होता जा रहा है।लोगों को अपना नाम तक हिंदी में लिखना नही आता है।अभी कुछ दिनों पहले ही “विश्वेश्वरैया” जैसे सामान्य शब्द के चक्रवात में फँसे एक राजनेता(?) के सीमित हिंदी ज्ञान पर मीडिया में बहुत हास्य-विनोद होता रहा।हिंदी फिल्म जगत की बात करें तो 2 दशकों से इश्क़,नफरत,वफ़ा जैसे अनेक उर्दू पर्यायवाचियों ने मेरी “रूह के परिंदे” को फड़फड़ा कर रखा है।रही-सही कसर आधुनिकवाद के हिंदी कवियों(?) ने पूर्ण कर दी है।एक प्रयोगवादी हिंदी कवि की रचना देखें-
“शौच करते समय चप्पल तूने जो पहनी,
एक्यूप्रेशर के बिंदुओं से दबाओ बीमारी की टहनी”
अस्तु(अर्थात-खैर)
उल्टे घड़े पर पानी की तरह ही सही पर मैं आपको हिंदी में बात करने,लिखने और विचार करने के लिए प्रोत्साहित करता हूँ।अपना प्रतिदिन का मुखपुस्तक लेख(फेसबुक-पोस्ट)शुद्ध हिंदी में लिखने का प्रयास करें,ना कि अग्रेषित(फॉरवर्ड)करें।आने वाली पीढ़ी के वैचारिक उन्नयन के लिए हमें आज ही हिंदी भाषा की समृद्धि पर कार्य शुरू कर देना चाहिए ताकि भारत पुनः नित नवीन तकनीकों और प्राचीन युक्तियों के संतुलन वाला स्वर्णिम सिंहासन प्राप्त कर सके।
जय हिंदी।
जय हिंद।
-मूल लेखक
डॉ.सुमित दिंडोरकर
B.H.M.S.,M.D.(Mumbai)
होम्योपैथ व काउंसिलर
मॉडर्न होम्यो क्लिनिक
(Estd.–1982)